भाजपूरी संविधान में अपना स्थान खोजती हुई


भाजपुरी भाषा को संविधान की आठवी अनुसूची में शामिल करने की आवाज एक बार उच्च सदन राज्यसभा में फिर उठाया गया। यह मुद्दा उठाया गया जदयू के सांसद द्वारा। यह मुद्दा कई बार उठाया गया और इसकी मान्यता को दिलाने का आश्वासन भी  दिया गया  । जदयू के सांसद  इसका बीडा उठाया हैं । हमारे देश का प्रधानमन्त्री भी बन चुके हैं इस भाजपुरीया मांटी से चन्द्रशेखर जी जो बलिया से आते थे जहाँ खांटी भोजपुरी बोली जाती हे। फिर भी आजतक भोजपूरी को मान्यता नहि मिल पायी यह बड़े ही अफसोस की बात हैं।
इधर चुनाव में मोदी जी भी भाजपुरी में संबोधित कर लोगों को लुभाने की कोशिश किये थे। भाजपुरी भाषा की लोकप्रियता किसी से छुपी नहीं हैं।  यह भाषा जितनी मधुर लगती है लिखावट में उनती आसान नहीं हैं। 
इ गनवा त भोजपुरीया में आप लोग तो सुने ही होंगे---
काँहे खिसियाईल बाडु जान लेबू का हो
बोला हमार सुगनी परान लेबू  का हो ।