सिद्धासन की विधि व उससे लाभ
सिद्धासन सिद्ध योगियों का प्रिय आसन होने और अलौकिक सिद्धियाँ प्रदान करने वाला होने के कारण इसका नाम सिद्धासन है। सिद्धासन को सभी आसनों में सबसे श्रेष्ठ माना जाता है।
ऐसा कहा जाता है कि इस आसन में बैठकर जो कुछ भी पढा जाता है वह आसानी से याद हो जाता है। इसलिऐ विद्यार्थीयों के लिऐ यह आसन विशेष फायदेमंद होता है।
ऐसा कहा जाता है कि इस आसन में बैठकर जो कुछ भी पढा जाता है वह आसानी से याद हो जाता है। इसलिऐ विद्यार्थीयों के लिऐ यह आसन विशेष फायदेमंद होता है।
# सिद्धासन की विधि #
1• सामान्य श्वास लेते हुवे दोनों पैरों को फैलाकर एक स्वच्छ आसन / योगा मैट पर बैठ जाऐं।
2• बायें पैर की घुटने को मोंड़कर , एड़ी को गुदा ( Anus ) और जननेन्द्रिय ( Genitals ) के बीच रखें।
3• अब दाहिने पैर की एड़ी को जननेन्द्रिय के ऊपर रखें।
( नोट : इस प्रकार से रखे जिससे जननेन्द्रिय या अण्डकोष पर दबाव न पडे। )
( नोट : इस प्रकार से रखे जिससे जननेन्द्रिय या अण्डकोष पर दबाव न पडे। )
4• दोंनो हाथों की हथेली को एक दूसरे के ऊपर गोद में नाभि के पास रखें / अथवा / दोंनो हाथों को मुद्रा अवस्था में घुटनों पर रखें।
5• आँखे बंद करें और धीमें-धीमें गहरी सांस लें । अपना सारा ध्यान श्वासों पर रखें।
# सिद्धासन करने से होने वाले फायदे #
1• स्वप्नदोष जैसी समस्या से निजात मिलती है । जिससे वीर्य की रक्षा होती है।
इसलिए यह आसन ब्रम्हचर्य पालन में यह आसन विशेष रूप से सहायक होता है।
2• मन शांत और एकाग्र होता है।
3• जठराग्नि तेज होती है और पाचनक्रिया ठीक होती है।
4• स्मरणशक्ति बढती है इसलिए विद्यार्थीयों के लिऐ यह आसन विशेष लाभकारी है।
सिद्धासन महापुरूषों का आसन माना जाता है। इसे किसी योग - प्रशिक्षक के मार्गदर्शन में करें उत्तम होगा ।
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