महिला सशक्तिकरण क्यों है जरूरी
पूरे विश्व में केवल हमारा भारतवर्ष ही ऐसा है जहाँ नारी को शक्ति , सृजन और सम्मान का प्रतीक माना जाता है। हमारे धर्मग्रंथ नारी शक्ति के महिमामण्डन से भरे पडे हैं। हमारे शास्त्रों में कहा गया है कि जहाँ नारी की पूजा होती है वहीं देवताओं का निवास होता है।
एक ओर जहाँ नारी को सहनशीलता , कोमलता और क्षमाशीलता की देवी माना जाता है वहीं जरूरत पड़ने पर यह दुर्गा का भी रूप धारण कर लेती है।
प्रकृति ने वंश वृद्धि की जिम्मेदारी जो नारी को दे रखी है वह न केवल एक दायित्व है बल्कि एक चमत्कार भी है।
अथर्ववेद में नारी को धर्म का प्रतीक कहा गया है। कोई भी धार्मिक कार्य उसके बगैर पूरा नहीं माना जाता है।
वहीं आज उसी नारी का दुनियाभर में उत्पीड़न बढ़ता जा रहा है। उनकी सहनशीलता और सहजता को ही उनकी कमजोरी समझा जा रहा है।
हालांकि बहुत से देश हमारा देश भी ! महिला शक्ति को पहचानकर उनके सशक्तिकरण की राह पर आगे बढ़ चले हैं।
अथर्ववेद में नारी को धर्म का प्रतीक कहा गया है। कोई भी धार्मिक कार्य उसके बगैर पूरा नहीं माना जाता है।
वहीं आज उसी नारी का दुनियाभर में उत्पीड़न बढ़ता जा रहा है। उनकी सहनशीलता और सहजता को ही उनकी कमजोरी समझा जा रहा है।
हालांकि बहुत से देश हमारा देश भी ! महिला शक्ति को पहचानकर उनके सशक्तिकरण की राह पर आगे बढ़ चले हैं।
नारी अपने आत्मविश्वास के बल पर अब दुनिया में एक अलग पहचान बनाने में सफल हो रही हैं। शिक्षा के कारण उनमे जागरूकता आयी है और वो आर्थिक और मानसिक रूप से आत्मनिर्भर हो रहीं हैं।
सच तो यह है अब यह कहकर उनके आत्मविश्वास को ठेस नहीं पहुचाया जा सकता कि वह एक अबला नारी है।
सच तो यह है अब यह कहकर उनके आत्मविश्वास को ठेस नहीं पहुचाया जा सकता कि वह एक अबला नारी है।
अपनी काबिलियत क दम पर वह कामयाबी को छू रही है। वह न केवल परिवार को संभालती है बल्कि हर क्षेत्र में पुरूषों को बराबर टक्कर दे रही हैं।
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