नोबल विजेता काजुओ इशिगुरो ( Kazuo Ishiguro ) की ये बातें जरूर पढ़नी चाहिऐ
वर्ष 2017 की साहित्य क्षेत्र में नोबल पुरस्कार पाने वाले जपानीज मूल के ब्रिटिश लेखक काजुओ इशिगुरो का एक सफल लेखक बनने की कहानी बड़ा ही रोचक है।
काजुओ इशिगुरो अपने उपन्यास " द रिमेन्स आफ द डे " से काफी प्रसिद्धि प्राप्त की और इसके लिए इन्होनें मैन बुकर प्राइज भी पायी। इशिगुरो , उपन्यास के साथ - साथ छोटी - छोटी कहानियाँ भी लिखते हैं , गीतकार और स्तंभकार भी हैं ।
काजुओ इशिगुरो कहते हैं कि किसी भी क्षेत्र में सफल होने के लिऐ कठोर अनुशासन और अपनी प्राथमिकता का निर्धारण करना बेहद जरूरी होता है।
काजुओ का जन्म जापान के नागाशाकी में 8 नवम्बर 1954 को हुआ था। 5 वर्ष की आयु में अपने माता-पिता के साथ जापान छोड़कर इंग्लैण्ड आ गये और यहीं की नागरिकता ले ली।
दोस्तों !! इशिगुरो नोबल पुस्कार के लिए नामिनेट होने के बाद अपने लेखन संघर्ष से संबंधित कुछ बाते साझा की जिसे हम यहाँ रख रहे हैं।
वो कहते हैं ………
" पहले मैं संगीतकार बनना चाहता था , लेकिन उसमें सफल न हो सका। फिर मैंने लेखन को अपना कैरियर बनाया।
मैंने आधे घण्टे का एक रेडियो नाटक लिखकर बीबीसी को भेजा था , लेकिन बीबीसी ने उसे खारिज कर दिया । पर इसके बाद मुझे प्रोत्साहित करने वाली कुछ प्रतिक्रियाऐं भी मिली।
अपने दूसरे उपन्यास की व्यापक सफळता के चलते मेंरे लेखन की निरन्तरता भंग हो गई थी। लेखन से इतर मेरी व्यस्तताऐं बहुत बढ़ गई थी और असली काम जो मुझे करना था वो ठप हो गया था । मुझे याद है कि एक साल पहले मैंने अपने अगले उपन्यास का केवल एक अध्याय लिखा था लेकिन उसके बाद काम आगे नहीं बढ़ सका ।
इसलिए हमने एक योजना बनाई कि चार हप्ते तक कठोर अनुशासन में रहकर में अन्यत्र जगह जाकर लिखूँगा। इसे हमने रहस्यमय ढंग से ' क्रैस ' नाम दिया। इस दौरान में नौ बजे सुबह से साढे दस बजे रात तक लिखता रहता था। बीच में लंच या डीनर के लिऐ ही उठता था। मुझे उम्मीद थी कि मेरी इस गहरी प्रतिबद्धता से न मैं केवल ज्यादा काम कर सकूँगा बल्कि ऐसी मानसिक स्थिति तक पहूचुँगा जिसमें मेरी काल्पनिक दुनिया वास्तविकता से भी अधिक वास्तविक होगी।
जब हम दक्षिणी लंदन के एक नये घर में आये तब मुझे अलग से पढने का कमरा मिला । इससे पहले मैंने अपने दोनों उपन्यास डाइनिंग टेबल पर ही लिखा था। जहाँ पर में आराम से अपने कागजों को फैला सकता था। और इस तरह से मैं द रिमेंस आफ द डे लिखना शुरू किया । लिखते वक्त मैंने न तो शिल्प और शैली की परवाह की और न ही कथानक की। मेंरी प्राथमिकता केवल यह थी कि आइडिया का विकास हो और वह आगे बढ़े।
चार हप्तों तक मैंने यह लय बनाये रखी और अन्तत: यह उपन्यास पूरा कर लिया । हालांकि इसे व्यवस्थित रूप देने के लिए और समय की जरूरत थी । जिसको मैंने व्यवस्थित किया। "
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