विनोबा भावे : एक महान दार्शनिक और समाज सुधारक


एक कहावत है “ कुछ महान पैदा होते हैं , कुछ महानता प्राप्त करते हैं और कुछ पर महानता थोपी जाती है।” विनोबा भावे उन महान विभूतियों में से थे जिन्होंने अपने कर्मों से महानता  अर्जित की। वे एक महान दार्शनिक, संत , समाज सुधारक या यूं कहे तो एक युग-निर्माता थे ।



विनोबा भावे का जन्म 11 सितंबर 1895 को महाराष्ट्र के कोलाबा जिले के एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था। इनका वास्तविक नाम विनायक नरहरी भावे था। महात्मा गांधी जी स्नेहवश उन्हें विनोबा पुकारते थे। फिर ये विनोबा भावे नाम से ही विख्यात हुवे।  इनके पिता का नाम नरहरी शंभू राव भावे था और माता का नाम रुकमणी देवी था।

महात्मा गांधी जी से भेंट :




ऐसा कहा जाता है कि विनायक जी प्रारंभ में हिमालय में जाकर शरण लेकर आध्यात्मिक जीवन जीना चाहते थे , परंतु ऐसा हो नहीं पाया।
 विनायक जी , गांधी जी के लेख और भाषण हमेशा पढ़ते रहते थे । उनके अन्तर्मन में कुछ प्रश्न उभर रहे थे जिसे उन्होंने एक पत्र गांधी जी को लिखकर भेजा , जिसका उत्तर भी जल्दी ही आ गया। इसके बाद इनके बीच कई बार पत्राचार हुआ और फिर  दिन महात्मा गांधी जी ने उन्हें मिलने का सुझाव दिया।

7 जून 1916 को विनायक और महात्मा गांधी जी की भेंट हुई। विनोबा भावे ने स्वयं महात्मा गांधी से अपनी भेंट का स्मरण करते हुए कहा था “ विधाता मुझे गांधी जी के पास ले गया। मैंने उनमें हिमालय की शांति के साथ क्रांति की आग भी पाई । मैंने अपने आप से कहा कि मेरी दोनों कामनाएं पूरी हो गई। ”

स्वतंत्रता के पहले विनोबा भावे , महात्मा गांधी जी की रचनात्मक  कार्यों में सक्रिय रूप से योगदान दे रहे थे। चुकि महात्मा गांधी का अधिकांश समय स्वतंत्रता आंदोलन में लगने लगा । जिसके कारण गांधी जी द्वारा स्थापित आश्रम तथा उनकी रचनात्मक कार्यों का उत्तरदायित्व विनोबा भावे जी पर आ पड़ा। विनोबा भावे ने इन कार्यक्रमों को पूरा करने में अपने दृढ़ लगन और सूझबूझ का परिचय दिया।

विनोबा भावे भूदान आंदोलन के प्रणेता के रूप में :




सन 1951 ई. में बिनोवा जी ने साम्यवादी आदिवासियों को अहिंसा का पाठ पढ़ाने के लिए तेलंगाना की पदयात्रा की। 18 अप्रैल 1951 को संध्या काल में वे पोचमपल्ली पहुंचे। उसी समय एक बूढ़ा हरिजन उनके पास आया और उनसे हाथ जोड़कर कहा कि अमीरों के पास हजारों एकड़ की भूमि है और गरीबों के पास तनिक भी नहीं है। ऐसी ऐसी स्थिति में व्यवस्था किस प्रकार चल सकती है ?
विनोबाजी उसके विचारों से बहुत अधिक प्रभावित हुए और उससे पूछा कि तुम्हें अपने जीवन यापन के लिए कितनी भूमि चाहिए ? वृद्ध व्यक्ति का उत्तर था - “ 8 एकड़ ” ।
उसके तत्काल बाद विनोबा जी ने वहां एकत्रित लोगों से पूछा, तुममें से कौन इनको भूमि दान दे सकता है ?
एक संभ्रांत नागरिक ने इस पर अपनी सहमति दी और यहीं से विनोबा भावे जी के भूदान आंदोलन का श्रीगणेश हुआ।
विनोबा भावे जी ने 36000 मील की पदयात्रा करके लगभग 4400000 एकड़ भूमि एकत्रित की और उसे भूमि हिनों में वितरित करने का प्रयास किया।

विनोबा जी के अंतिम क्षण :

विनोबा जी “ सादा जीवन और उच्च विचारों ” के हिमायती थे । निरंतर कार्य में रत रहने के कारण उनका स्वास्थ्य गिरता गया और  अस्वस्थ रहने लगे।
 5 नवंबर 1980 को उन्हें दिल का दौरा पड़ा और 8 नवंबर 1982 को रात्रि 8: 00 बजे से उन्होंने अन्न ,  जल और औषधि लेना छोड़ दिया ।
 इस महान संत ने अपना पार्थिव शरीर छोड़ने के लिए जिस विधि को अपनाया , वह अपने आप में अनोखी थी । देश और विदेश की महान विभूतियों और प्रधानमंत्री के आग्रह के पश्चात भी उन्होंने अन्न - जल ग्रहण नहीं किया और निरंतर राम हरि का जाप करते रहे ।
15 नवंबर 1982 को विनोबा भावे ने धनतेरस के दिन इस संसार को अलविदा कह दिया।

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