हिंदी ज्ञान : वर्ण | वर्ण के भेद | स्वर | स्वर के भेद | हस्व स्वर | दीर्घ स्वर | प्लुत स्वर | व्यंजन | व्यंजन के प्रकार | स्पर्श व्यंजन | अंतस्थ व्यंजन | उष्म व्यंजन | | शब्द | शब्द के प्रकार | रूढ़ शब्द | योगरूढ़ शब्द | योगिक शब्द | अल्पप्राण | महाप्राण |
यदि आप इस लेख को पढ़ना चाह रहे हैं तो कृपया ध्यान दें कि यह हिंदी का एक छोटा सा शार्ट नोट्स है जो कि प्रतियोगी परीक्षा की दृष्टि से बनाया गया है । इनमें से बार-बार प्रश्न पूछे जाते हैं। विस्तृत ज्ञान के लिए किताबों का सहारा लें। इसे हमने त्रुटि रहित रखने का प्रयास किया है फिर भी यदि आपको लगे कुछ त्रुटि है तो कृपा करके कमेंट के माध्यम से हमें जरूर बताएं।
वर्ण : मूल ध्वनि , जिसके खंड नहीं किए जा सकते , वर्ण कहलाता है।
हर वर्ण की अपनी एक लिपि होती है लिपि को वर्ण संकेत भी कहते हैं।
वर्ण के भेद : वर्ण के दो भेद होते हैं
पहला स्वर और दूसरा व्यंजन
स्वर :
वह वर्ण जिसके उच्चारण में किसी अन्य वर्ण की आवश्यकता नहीं होती स्वर कहलाता है।
सामान्यता हिंदी वर्णमाला में 11 स्वर हैं ।
स्वर के भेद : इनके दो भेद हैं - पहला मूल स्वर और दूसरा संयुक्त स्वर
मूल स्वर : इनकी संख्या 8 है जैसे - अ,आ,इ,ई,उ,ऊ,ए,ओ
संयुक्त स्वर : इनकी संख्या 2 है जैसे -
ऐ ( यह अ और ए से मिलकर बना है ) ,
औ ( यह और अ और ओ से मिलकर बना है )
मूल स्वर तीन प्रकार के होते हैं --
१.हस्व स्वर
२.दीर्घ स्वर
३.प्लुत स्वर
१.हस्व स्वर : इनके उच्चारण में कम समय लगता है जैसे
अ इ उ
२. दीर्घ स्वर : इनके उच्चारण में हस्व स्वर से दुगना समय लगता है।
जैसे आ,ई,ऊ,ए,ऐ,ओ,औ
३. प्लुत स्वर : ये त्रिमात्रिक स्वर होते हैं इनके उच्चारण में हस्व स्वर की अपेक्षा तीन गुना समय लगता है।
जैसे ; ओम
व्यंजन :
जिन वर्णों को बोलने में स्वर की सहायता लेनी पड़ती है , व्यंजन कहलाती है । जैसे ; क ख ग घ आदि।
व्यंजन के प्रकार : ये तीन प्रकार के होते हैं -
१.स्पर्श व्यंजन
२.अंतस्थ व्यंजन
३.उष्म व्यंजन
१.स्पर्श व्यंजन : इसके उच्चारण में जीव कंठ तालु पोस्ट दंत मुर्धा आदि का स्पर्श होता है।
इनकी संख्या 25 होती है
कवर्ग : यह कंठ को स्पर्श करती है जैसे;
क,ख,ग,घ,ङ
चवर्ग : यह तालु को स्पर्श करती है जैसे;
च,त,ज,झ,ञ
टवर्ग : यह मुर्दा को स्पर्श करती है जैसे;
ट,ठ,ड,ढ,ण
तवर्ग : यह दंत को स्पर्श करती है जैसे;
त,थ,द,ध,न
पवर्ग : यह ओष्ठ को स्पर्श करती है जैसे ;
प,फ,ब,भ,म
२.अंतस्थ व्यंजन : इन्हें ‘अर्ध स्वर ’ या ‘यण स्वर’ भी कहते हैं।
इनकी संख्या 4 है जैसे ;
य,र,ल,व
३. उष्म व्यंजन : इनकी संख्या 4 होती है जैसे;
श,ष,स,ह
“ अं ” और “अ:” को अयोगवाह कहा जाता है। जिसमें “ अं ” को अनुस्वार
तथा
“ अ: ” को विसर्ग कहा जाता है।
घोष वर्ण : व्यंजन वर्ण का तीसरा ,चौथा और पांचवां वर्ण घोष वर्ण कहलाता है।
जैसे ;
ग,घ,ङ
ज,झ,ञ
ड,ढ,ण
द,ध,न
ब,भ,म
ध्यान दें -- इसके अतिरिक्त “ य ,र , ल , व , ह ” को भी घोष वर्ण कहा जाता है।
अघोष वर्ण : व्यंजन वर्ण के पहले और दूसरे वर्ण को अघोष वर्ण कहा जाता है।
जैसे ;
क ,ख | च, छ | ट ,ठ | त, थ | प ,फ
ध्यान दें -- इसके अतिरिक्त “ श , ष ,स ” को भी अघोष वर्ण कहा जाता है।
बनावट के आधार पर शब्द तीन प्रकार के होते हैं
१.रूढ़ शब्द
२.योगरूढ़ शब्द
३.योगिक शब्द
१.रूढ़ शब्द :
वह शब्द जो किसी अन्य शब्द के योग से न बने हो और किसी विशेष अर्थ को प्रकट करते हैं तथा जिनके टुकड़ों का कोई अर्थ न होता हो , रूढ़ शब्द कहलाता है।
जैसे ; कल , पर आदि ।
२.योगिक शब्द :
जो शब्द दो या दो से अधिक शब्दों के योग से बने हो योगिक शब्द कहलाते हैं।
जैसे; देवालय ( देव + आलय )
देवदूत ( देव + दूत )
३.योगरूढ़ शब्द :
वे शब्द जो यौगिक शब्द की तरह तो दिखते हैं किंतु सामान्य अर्थ को न प्रकट कर किसी विशेष अर्थ को प्रकट करते हैं योगरूढ़ शब्द कहलाते हैं।
जैसे ; पंकज ( पम् + कज )
जिसका अर्थ होता है कीचड़ में उत्पन्न होने वाला यानि “ कमल ”
यह सामान्य अर्थ में प्रचलित न होकर कमल के अर्थ में रूढ़ हो गया है इसलिए इसे रूढ़ शब्द कहते हैं।
अव्यय शब्द : जैसे ; जब , कब , कभी , अभी , इधर , उधर आदि शब्द अव्यय शब्द कहलाते हैं।
उत्पत्ति के आधार पर शब्द चार प्रकार के होते हैं
१.तत्सम
२.तद्भव
३.देशज
४.विदेशी
अल्पप्राण ::
[ सभी स्वर वर्ण को + 1 ,3 ,5 वां व्यंजन वर्ण + य ,र,ल,व + अं ] को अल्पप्राण कहा जाता है।
महाप्राण : [ 2 , 4 व्यंजन वर्ण + विसर्ग + उष्म वर्ण ( श,ष,स,ह ] को महाप्राण कहा जाता है।
वर्ण : मूल ध्वनि , जिसके खंड नहीं किए जा सकते , वर्ण कहलाता है।
हर वर्ण की अपनी एक लिपि होती है लिपि को वर्ण संकेत भी कहते हैं।
वर्ण के भेद : वर्ण के दो भेद होते हैं
पहला स्वर और दूसरा व्यंजन
स्वर :
वह वर्ण जिसके उच्चारण में किसी अन्य वर्ण की आवश्यकता नहीं होती स्वर कहलाता है।
सामान्यता हिंदी वर्णमाला में 11 स्वर हैं ।
स्वर के भेद : इनके दो भेद हैं - पहला मूल स्वर और दूसरा संयुक्त स्वर
मूल स्वर : इनकी संख्या 8 है जैसे - अ,आ,इ,ई,उ,ऊ,ए,ओ
संयुक्त स्वर : इनकी संख्या 2 है जैसे -
ऐ ( यह अ और ए से मिलकर बना है ) ,
औ ( यह और अ और ओ से मिलकर बना है )
मूल स्वर तीन प्रकार के होते हैं --
१.हस्व स्वर
२.दीर्घ स्वर
३.प्लुत स्वर
१.हस्व स्वर : इनके उच्चारण में कम समय लगता है जैसे
अ इ उ
२. दीर्घ स्वर : इनके उच्चारण में हस्व स्वर से दुगना समय लगता है।
जैसे आ,ई,ऊ,ए,ऐ,ओ,औ
३. प्लुत स्वर : ये त्रिमात्रिक स्वर होते हैं इनके उच्चारण में हस्व स्वर की अपेक्षा तीन गुना समय लगता है।
जैसे ; ओम
व्यंजन :
जिन वर्णों को बोलने में स्वर की सहायता लेनी पड़ती है , व्यंजन कहलाती है । जैसे ; क ख ग घ आदि।
व्यंजन के प्रकार : ये तीन प्रकार के होते हैं -
१.स्पर्श व्यंजन
२.अंतस्थ व्यंजन
३.उष्म व्यंजन
१.स्पर्श व्यंजन : इसके उच्चारण में जीव कंठ तालु पोस्ट दंत मुर्धा आदि का स्पर्श होता है।
इनकी संख्या 25 होती है
कवर्ग : यह कंठ को स्पर्श करती है जैसे;
क,ख,ग,घ,ङ
चवर्ग : यह तालु को स्पर्श करती है जैसे;
च,त,ज,झ,ञ
टवर्ग : यह मुर्दा को स्पर्श करती है जैसे;
ट,ठ,ड,ढ,ण
तवर्ग : यह दंत को स्पर्श करती है जैसे;
त,थ,द,ध,न
पवर्ग : यह ओष्ठ को स्पर्श करती है जैसे ;
प,फ,ब,भ,म
२.अंतस्थ व्यंजन : इन्हें ‘अर्ध स्वर ’ या ‘यण स्वर’ भी कहते हैं।
इनकी संख्या 4 है जैसे ;
य,र,ल,व
३. उष्म व्यंजन : इनकी संख्या 4 होती है जैसे;
श,ष,स,ह
“ अं ” और “अ:” को अयोगवाह कहा जाता है। जिसमें “ अं ” को अनुस्वार
तथा
“ अ: ” को विसर्ग कहा जाता है।
अन्य महत्वपूर्ण बिंदू :
घोष वर्ण : व्यंजन वर्ण का तीसरा ,चौथा और पांचवां वर्ण घोष वर्ण कहलाता है।
जैसे ;
ग,घ,ङ
ज,झ,ञ
ड,ढ,ण
द,ध,न
ब,भ,म
ध्यान दें -- इसके अतिरिक्त “ य ,र , ल , व , ह ” को भी घोष वर्ण कहा जाता है।
अघोष वर्ण : व्यंजन वर्ण के पहले और दूसरे वर्ण को अघोष वर्ण कहा जाता है।
जैसे ;
क ,ख | च, छ | ट ,ठ | त, थ | प ,फ
ध्यान दें -- इसके अतिरिक्त “ श , ष ,स ” को भी अघोष वर्ण कहा जाता है।
बनावट के आधार पर शब्द तीन प्रकार के होते हैं
१.रूढ़ शब्द
२.योगरूढ़ शब्द
३.योगिक शब्द
१.रूढ़ शब्द :
वह शब्द जो किसी अन्य शब्द के योग से न बने हो और किसी विशेष अर्थ को प्रकट करते हैं तथा जिनके टुकड़ों का कोई अर्थ न होता हो , रूढ़ शब्द कहलाता है।
जैसे ; कल , पर आदि ।
२.योगिक शब्द :
जो शब्द दो या दो से अधिक शब्दों के योग से बने हो योगिक शब्द कहलाते हैं।
जैसे; देवालय ( देव + आलय )
देवदूत ( देव + दूत )
३.योगरूढ़ शब्द :
वे शब्द जो यौगिक शब्द की तरह तो दिखते हैं किंतु सामान्य अर्थ को न प्रकट कर किसी विशेष अर्थ को प्रकट करते हैं योगरूढ़ शब्द कहलाते हैं।
जैसे ; पंकज ( पम् + कज )
जिसका अर्थ होता है कीचड़ में उत्पन्न होने वाला यानि “ कमल ”
यह सामान्य अर्थ में प्रचलित न होकर कमल के अर्थ में रूढ़ हो गया है इसलिए इसे रूढ़ शब्द कहते हैं।
अव्यय शब्द : जैसे ; जब , कब , कभी , अभी , इधर , उधर आदि शब्द अव्यय शब्द कहलाते हैं।
उत्पत्ति के आधार पर शब्द चार प्रकार के होते हैं
१.तत्सम
२.तद्भव
३.देशज
४.विदेशी
अल्पप्राण ::
[ सभी स्वर वर्ण को + 1 ,3 ,5 वां व्यंजन वर्ण + य ,र,ल,व + अं ] को अल्पप्राण कहा जाता है।
महाप्राण : [ 2 , 4 व्यंजन वर्ण + विसर्ग + उष्म वर्ण ( श,ष,स,ह ] को महाप्राण कहा जाता है।
Comments
Post a Comment